
Tawang Monastery (Tibetan Buddhist)
डॉ गुलरेज़ शेख
कुछ दिनों से बीच बीच में मीडिया अरुणाचल पर कुछ कुछ मेहरबान है। इतना तो बोध सबको हो चुका है कि अरुणाचल में कुछ तो हो रहा है। संभवतः ठण्ड के मौसम में सियासत गर्म है। पर यदि ऐसी ही गर्म सियासत दिल्ली या उत्तर प्रदेश या महाराष्ट्र की होती तो समाचार की सुर्खीयों से राष्ट्रीय मीडिया भी गर्मा-गर्म हो जाता। पर चूँकि बात अरुणाचल जैसे छोटे राज्य की है, अतः ब्रेकिंग न्यूज़ तथा टेलीविज़न चर्चाओं हेतु स्थान भी तंग ही है तथा यह विषय भी रीड़ की हड्डी में चुभन करने हेतु पर्याप्त नहीं कि जिस राज्य में राजनैतिक अस्थिरता के वातावरण को 6 माह से अधिक बीत चुका है, वह चीन से ११२६ कि.मी की सीमा साँझा करता है तथा चीन अंतराष्ट्रीय मंच पर उसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा चीख चीख कर पुकारता है। यदि इस तथ्य के उपरांत भी किसी की रीड़ की हड्डी में चुभन न हो, तो यह कथन अतिश्योक्ति नहीं कि हम केंचवों में रीड़ की हड्डी होने की कल्पना कर रहे हैं।

A lake at Sela on the way to Tawang in West Kameng district of Arunachal Pradesh.
देश की संसद में मात्र २ सांसद भेजने वाले अरुणाचल का राजनैतिक महत्व बौना क्यों न हो पर उसका सामरिक महत्व भीमकाय है।
यह भी उल्लेखनीय है कि जनसंख्या के अनुपात से समूचे पूर्वोत्तर में सर्वाधिक हिंदी भाषी यदि कोई राज्य है, तो वह अरुणाचल ही है।
इन सभी स्थिति-परिस्थितियों को दृष्टी में रख यह महत्वपूर्ण तथा राष्ट्रहित में है कि इस राज्य में राजनैतिक वातावरण शांतिपूर्ण रहे तथा राजनैतिक दल अपने तुच्छ राजनैतिक हितों को साधने हेतु राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा न करें।
अरुणाचल का राजनैतिक संकट प्रदेशव्यापी राजनैतिक संकट न होकर वास्तव में कांग्रेस पार्टी का आंतरिक संकट है, जिसकी जड़ राज्य की सम्पूर्ण सत्ता की कुंजी को परिवार विशेष के पास होने की लालसा का होना तथा राज्य के सत्तापिपासुओं को दिल्ली स्थित कांग्रेसी परिवार विशेष के आशीष का होना है।
संभवतः स्वतन्त्र भारत के इतिहास में यह प्रथम अवसर होगा जब राज्य की विधानसभा के सभापति द्वारा विधानसभा को सील कर लिया गया हो, जिस पर राज्य के एसएसपी को लिखित में प्रश्न करना पड़ा कि चुने गए विधायकों को विधानसभा में आने से कैसे रोका जा सकता है? इसका सभापति महोदय द्वारा उत्तर देना तो दूर की बात है, उल्टे एसएसपी को निर्देशानुसार कार्यवाही करने हेतु आदेशित किया गया। यहाँ तक कि धारा १७४ जिसके अनुसार विधानसभा के अंतिम कार्यदिवस से ६ माह या उसके अंदर दूसरा सत्र होना अनिवार्य है का भी अनादर हुआ, जिसे रोकने तथा राज्य सरकार को असंवैधानिक पग पर जाने से बाधित करने हेतु राज्यपाल श्री जे पी राजखोवा द्वारा विधानसभा का सत्र बुलाया गया। विधानसभा का सभापति द्वारा सील किये जाने की स्तिथि में होटल के सभागृह में सत्र कराया गया जिसके विरुद्ध अरुणाचल के तथाकथित मुख्यमंत्री श्री नाबाम तुकी न्यायिक लड़ाई लड़ रहे हैं।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि विधानसभा को सील करने से लेकर सत्र के न बुलाने तथा राज्यपाल द्वारा बुलाए सत्र को न्यायालय में ले जाने तक की कवायद तथाकथित मुख्यमंत्री नाबाम तुकी तथा तथाकथित सभापति नाबाम रीबिया (जो आपस में चचेरे-मसेरे भाई हैं) द्वारा स्वयं के परिवार की सत्ता के पटिये उलटने से बौखलाकर की गयी है। ६० सदस्यों वाली विधानसभा के ४७ कांग्रेसी विधायकों में २१ विधायक चचेरे-ममेरे नाबाम भाईयों के विरुद्ध हैं। ऐसे में स्पष्ट है कि विधानसभा की पटल पर नाबाम भाई बहुमत के आंकड़े के मीलों दूर हैं, अतः स्वयंहित हेतु राष्ट्रहित को स्वाहाः कर विधानसभा सील कर दी गई तथा राज्यपाल पर हल्लाबोल किया गया। जब केंद्र ने संविधान एवम् लोकतंत्र की रक्षा करते हुए अपने संवैधानिक बल का उपयोग कर गवर्नर शासन लगाया, जिस पर केंद्र से विस्तृत प्रश्न कर तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय से संतुष्ट हो महामहिम राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदन किया गया, तब कांग्रेसी आलाकमान उस निर्णय को सर्वोच्छ न्यायालय में चुनौती दिया।
न्यायालय का निर्णय न्यायालय लेगा। पर कांग्रेसी आलाकमान से राष्ट्रहित में विनती है कि तुच्छ राजनीति को त्याग, चीन के मुँह में पानी लाने वाले तथा सामरिक महत्व के अरुणाचल के राजनैतिक वातावरण को शान्त रहने दें। इसी में राष्ट्रहित है।
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