
महाराष्ट्र राज्य के विधरव क्षेत्र स्थानीय किसानो द्वारा की जा रही आत्महत्या एक गंभीर महामारी के रूप में वृहद् पैमाने पर सम्पुरण देश और बिशेश्कर महाराष्ट्र राज्य के लिए चिंता का विषय है. यह मामला १९९० से आज तक निरंतर सुर्ख़ियों में रहा है फिर भी कम होने का कोई आसार नज़र नहीं आता.
इस तरह की घटनाएँ कई सबाल पैदा करती है जिसे मैं नीचे उल्लेख कर रहा हूँ :-
⦁ इतने सालों से इस तरह की घटना हो क्यों रही है?
⦁ कौन से कारक किसानों को आत्म्हत्या के लिए उकसाते हैं?
⦁ राज्य सरकार ने अभी तक क्या क्या काम किया जो इस तरह के घटनायों को रोका जा सकता ? क्यूंकि यह तो काफी सालों से चली आ रही है. क्या यह कहना उचित नहीं होगा की उसने इस चीज को गंभीरता से नहीं लिया है अभी तक.
⦁ क्या इस तरह की घटना से किसी को कुछ लाभ हो रहा है जो अपनी निहित स्वार्थ के लिए इस तरह के घटनायों को प्रोत्साहन दे रहे हैं.?
⦁ क्या यह सिर्फ कृषि से सिर्फ जुडी है या और भी कई कारण हैं जो किसी किसान को आत्म्हत्या को मजबूर करता है?
सबलों की कमी नहीं हैं. मगर ऊपर के सबाल का जबाब अगर मिल जाये तो न सिर्फ हम इसके कारण को जान सकते हैं तो कुछ ठोस उपाय उठाये जा सकते हैं.
इसके पहले की मैं इस समस्या की तह में जायुं , यह जरुरी है की हम विधर्व के बारे में कुछ जानें.
विधर्व महाराष्ट्र का पूर्वी क्षेत्र है जो नागपुर और अमरावती डिवीज़न को मिलाकर बना है. यह महाराष्ट्र राज्य के 31.6% जगह से बना है और इस राज्य के 21.3% आबादी यहाँ बस्ती है. इसके उतर में मध्य प्रदेश है, दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश है, पूरब में छत्तीसगढ़ हैं और पछिम में मराठ्वारा और खानदेश रीजन महाराष्ट्र के हैं. यह भारत के मध्य में आता है. इसके अपने काफी समिर्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है. मुख्या रूप से यहाँ के लोग वार्हादी बोलते हैं जो मराठी का हीं अपभ्रंश है.
यह क्षेत्र संतरे और काटन की खेती के लिए मशहूर हैं. यह राज्य के खनिज का २/३ भाग, जंगल के भूभाग के ३/४ हिस्सा और उर्जा का श्रोत है. विदर्भ ज्धार्मिक दंगों से अछूता रहा है मगर गरीबी और कुपोषण से यहाँ के नागरिक ट्रस्ट रहें हैं . यह महारष्ट्र के बाकि भूभाग से कम समिर्ध रहा है.
यह भी जानना जरुरी है की इसी पिछड़े पण को दूर करने के लिए विधर्व एक पृथक राज्य बनाया जाये तबसे ये मांग उठ रही है जब से इस प्रदेश को महाराष्ट्र से जोड़ा गया. नागपुर, गोंदिया, गडचिरोली, भंडारा ,वर्धा बुल्धाना , वाशिम, चंद्रपुर, अकोला , यवतमाल और अमरावती जिलों को पृथक विधर्व राज्य में जोड़ने की मांग अब तीव्र हो रही है.
मैं इस बिषय पर सिर्फ इतना बताना उचित समझता हूँ की यह मांग कितनी पुराणी है और जरुरी है और अभी क्या स्थिति है.
इतिहास से पता चलता है की संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य के कल्पना के पूर्व केन्द्रीय प्रोविन्सस legislature ने एक मत से १.१०.१९३८ को नागपुर में एक प्रस्ताव पारित किया महाविदार्व्हा राज्य बनाने की. भारत सरकार ने भी २९.१२.१९५३ को फज़ल अली की अध्यक्षता में प्राथम State Reorganisation Committee (SRC) का घट्न किया. उस समय के यहाँ के नेता एम् एस आने और ब्रिजलाल बियानी ने src को एक ज्ञापन दिया.
भारतरत्न डॉ बाबासाहेब आंबेडकर भी एक राज्य एक भाषा के आधार पर राज्यों का पुर्न्गातन के पक्ष में थे लेकिन वे एक भाषा एक राज्य के विरोधी थे. उनका स्पष्ट कहना था की इतने बड़े भूभाग को महारष्ट्र में मिलाकर शाशन करना कठिन है. SRC ने १९५६ में पृथक विधर्व राज्य बनाने की अनुशंषा की.

लेकिन इन सबके के बाबजूद पश्पच्पछिम के कदावर नेतोयों ने १९६० में इसे महाराष्ट्र के अन्दर शामिल करने को केंद्रीय सरकार को एक भाषा एक राज्य सिधांत पर बनाने को प्रभावित कर लेने में सक्षम हो गए. यह गौर तलब है की पुरे भारत में नागपुर शहर राजधनी होने का गौरव खो दिया जो एक शतक से इसके पास था.
हाल के दिनों में महाराष्ट्र सरकार द्वारा किये जा लगातार उपेक्षा तथा विधर्व में प्रभावशाली नेत्रित्व के कारण यहाँ के किसान काफी बुरी अवस्था में जीवन यापन कर रहे हैं. एक दशक में करीब ३२००० से ज्यादा किसानों ने यहाँ आत्म्हत्या की जो विध्रव के ११ जिलों में फैले हैं. यदपि यह भूभाग खनिज, कोयला, जंगल और पर्वतों से घिरे हैं मगर कोई विकास संभव नहीं हो सका है क्यूंकि दुस्र्रे क्षेत्र के नेता ने इसे नहीं होने दिया. सिर्फ शिव सेना के कारण अलग विदर्भ राज्य की मांग अभी तक स्वीकार नहीं किया गया. अगर स्वीकार किया जाता तो इस राज्य की तस्वीर कुछ ऐसी दिखती जो नीचे दिए गएँ हैं.
२००१ की जनगणना के आधार पर यहाँ की आबादी २०६३०९८७ है जो मुख्यत हिन्दू और बौध धर्मं के मानने वाले लोग हैं. डॉ बी र आंबेडकर जी के प्रयाशों के कारण बुध धर्म का प्रसार कुछ अधिक हुआ नहीं तो भारत के अलग भूभाग में मुसलमानों की जनसँख्या दुसरे स्थान पर आती है.
विदर्भा की अर्थव्यवस्था मुख्यत कृषि है और प्रचुर मात्र में खनिज और जंगल हैं. व्यवसाय के दृष्टि से चंद्रपुर, अमरावती और नागपुर प्रशिढ नगर है. अमरावती फिल्मों के distributorship के लिए भी जाना जाता है. चंद्रपुर में में भारत का एक बहुत बड़ा थर्मल पॉवर प्लांट है. कुछ मुख्या उद्योग जो कागज़, इस्पात, सीमेंट और कोयले के खदान से सम्बंधित है. यहाँ पर एक विशाल अंतरराष्ट्रीय कार्गो हब (MIHAN) नागपुर में विकसित किया जा रहा हैहै जो दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व एशिया से आने वाले भरी कार्गो के काम आयेगें. रस. १०००० करोड़ के भारत का सबसे बड़ा SEZ IT कंपनी के लिए लिए प्रस्तावित है. टूरिस्म विकास की भी यहाँ असीम सम्भावना है.
नाबार्ड जो कृषि के विकाश के लिए शीर्ष संस्था है उनके एक सहोद पत्र Suicide of Farmers in Maharashtra –Causes & Remedies
(S.M.Wakude, AGM, CSID, NABARD, HO, Mumbai)
के हिसाब से तेजी से ग्रामीण जनसँख्या वृद्धि के कारण परिवार का विभाजन हुआ जिसे कृषि भूमि छोटे छोटे टुकड़े में बंट गए. अभी ८० प्रतिशत कृषि क्षेत्र लघु और मार्जिनल किसानों जो पञ्च एकड़ से कम है. इसके कारण कृषि के पैदावार की लागत कई गुना बढ़ गयी है मगर उस अनुपात में उत्पदान नहीं बढ़ा और पैदावार की कीमत भी कम होती गयी. इस कारण बहुत से किसान ऋण में फंस गए और काफी तनाब में आ गए. छोटे स्तर पर खेती और कठिनाई में आ गयी क्यूंकि ज्ञान का आभाव, वैज्ञानिक धनाग से खेती का आभाव, विविध फसलों का आभाव, समुचित सिंचाई का आभाव, अनाज की अलाभकारी मूल्य, बिचोलिये का होना इसे और कठिन कर दिया.
अब मैं कुछ शोध और अद्याध्यायन इस कृषि समस्या नीचे संछेप में प्रस्तुत करना चाहूँगा.

प्रथम
प्रोफेसर के नागराज (Madras Institute of Development Studies) द्वारा केस अध्ययन के निष्कर्ष
उनके अनुसार सामान्य अत्म्यहत्य दर (जीएसआर) ( १ लाख जनसँख्या में अत्म्यहत्य की दर) १९९७ से २००५ तक १०.६ हमारे देश में था. जबकि उसी आधार पर किसान आत्महत्या दर (FSR) १२.९ था. इस तरह FSR से GSR का अनुपात १:१.२ होता था. महाराष्ट्र में FSR २९.९ से GSR १५.१ के चिंताजनक स्थिति में था. उन्होंने यह भी दर्शया की विदर्भ क्षेत्र सबसे गंभीर स्थिति में हैं.
द्वित्ये
प्रोफेसर राधाकृष्ण जैस एक्सपर्ट ग्रुप कृषि ऋण पर अध्ययन
कृषि ऋण सिर्फ आत्म्हत्या के मुख्य कारक नहीं है बल्कि कृषि वृद्धि दर में स्थिरता, विपणन जोखिमें, विकास का पूर्णत धवास्था होना, समुचित और समर्थ संस्थागत का आभाव तथा जीवन यापन का और दूसरा विकल्प का न होना भी शामिल है. इस ग्रुप ने कई कदमों को गंभीरता से लेने की सलाह भी दी जिसमे मुख्या है :
१. ऋण देने की प्रक्रिया को मजबूती और सरल बनाया जाये .
२. प्राकृत प्रकोप से नष्ट होने वाले फसलों के लिए गए ऋण का पुनर्रचना और कुछ छुट देना
३. `Moneylenders Debt Redemption Fund’ का निर्माण .
४. किसानों के स्वाश्थ्य के लिए स्वस्थ जोखिम बिमा पुरे परिवार के लिए उपलब्ध कराना
तीसरा
) Tata Institute of Social Science (TISS) Report-
(submitted in March 2005 study on sample of 36 (5%) of 644 suicide cases)
एक PIL के सुनवाई के दौरान मुंबई उच्च न्यालय के निर्णय के अनुसार Tata Institute of
Social Science (TISS) के द्वरा भी एक अध्ययन किया गया जीकी रिपोर्ट २००५ में सौंपी गयी.
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं :
⦁ अत्म्यहत्य बड़े किसानों और छोटे किसानों के अतिरिक्त भूमिहीन किसानों के द्वरा भी की गयी.
⦁ ऋण के भुगतान के कारण परिवार के मुखिया के द्वरा आत्महत्या की गयी. जिसके कारण उनके आश्रितों को पूरी तरह भूमिहीन हो जाना
इसमें कुछ लघु कालीन और दीर्घ कालीन उपायों को उतने का संस्तुति की.
चौथा
Indira Gandhi Institute of Development Research (IGIDR) Report on Suicide of
Farmers in Maharashtra (Jan 2006):
इस अध्ययन के लिए १०९ गांवों के ११६ आत्म्हत्या किये गए परिवार से साक्षात्कार लिए गए जो मुख्यत वर्धा , वाशिम और यवतमाल जिलों में स्थित थे.
निम्न मुख्य बातों को पाया गया ;
किसानो को उपज कम होना और उसके बिक्री मूल्य का कम होना. २००४ में इन जिलों में बारिश के आभाव के कारण गंभीर पंसिंचाई की समस्या पैदा हो गयी. जबकि पुरे राज्य में तथा देश में काफी पैदावार हुई. उस समय काटन के रिकॉर्ड पैदावार के कारण पुरे विश्व में काटन के मूल्य काफी नीचे आ गए. USA ने कॉटन किसानों को काफी अनुदान दिया और आयत शुल्क भी सिर्फ ५ प्रतिशत था. इसके कारण किसानो को काफी नुक्सान झेलना पड़ा.
पांचवां
महाराष्ट्र राज्य में मुख्य कारक जो किसानों को आत्म्हत्या दको मजबूर किया
मराठी में एक कहावत प्रसिद्ध है जिसका हिंदी अनुवाद है “ किसान ऋण में पैदा होता है और उसी में मर जाता है. यह आजादी के पहले भी लागु थे और आज भी लागु हैं. अगर हम विदर्भ क्षेत्र के किसानो के आत्महत्या को छानबीन करें तो यह तथ्य उभरता है की किसानों ने उजले सोने यानि कॉटन जो की एक जोखिम से भरा था उसको उनलोगों ने अपनाया.लेकिन उचित गुणवता के बिज नहीं होने के कारण और उच्च दाम वालू BT कॉटन बिज खरीदने की क्षमता न होने के कारण उनको लाभकारी मूल्य उपज का नहीं मिला. जिसके कारण वो ऋण चक्र में फंस गए और जीवनयापन की समस्या पैअद हो गयी. जिसका परिणाम हुआ काफी किसानों द्वारा आत्म्हत्या.
संस्थागत ऋण के सरल ढंग से उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्हों निजी साहूकारों से ऊँची ब्याज दर पर ऋण लिया. समय पर पैसा भुगतान नहीं करने के कारण साहूकारों ने गिरवी रखे जमीं छीन ली.
नागपुर द्वरा संचालित विदर्भ जन आन्दोलन समिति (VJAS) द्वारा २०१४ में किये गए आत्म्हत्या का मुख्य कारण सूखे की स्थिति क्यूंकि जून २०१४ और जुलाई २०१४ की अल्प वृष्टि के कारण सोयाबीन और कपास की फसल ख़राब हो गई. किसानों को फसल की बिक्री से उनकी लगत भी नहीं मिल सका.
यह उलेख्निये है की १८.११.२०१४ महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फद्नाविश ने राज्य के ३९००० गाँव में से १९००० गाँव को सुख्ग्रस्त घोषित कर दिया. क्भारत सरकार से ४५०० करोड़ राशि की मांग भी की. On 18 लोक सभा में एक चर्चा के दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री ने मन की पुरे देश में किसानों द्वारा की जा रही आत्म्हत्या में महाराष्ट्र का प्रथम स्थान है क्यूंकि कुल ३०१ ( जनवरी २०१५ से अप्रैल २०१५) आत्म्हत्या की घटना में अकेले २०४ आत्म्हत्या इस राज्य में हुआ.
मनोचिकित्सक द्वारा इस बिषय में राय
सबसे पहले हमको यह समझना जरुरी है की आत्म्हत्या कोई करता क्यों है. इस सिलसिले में नागपुर के प्रख्यात मानसिक चिकत्सक श्री डॉ सुशिल गावंडे जी से उनका मत जाना. उनका कहना था की ९० प्रतिशत आत्म्हत्या अवसाद के कारण होते हैं. सिर्फ १० प्रतिसत के कारण भिन्न भिन्न हो सकते हैं.
अगर उनके बातों का बिश्लेषण किया जाये तो यह पता चलता है की आत्म्हत्या करने वाला आदमी अचानक आत्म्हत्या नहीं करता. अगर परिवार वाले को जानकारी दी जाये तो वो उसके कुछ लक्षण पहले हीं पता लगना शुरू हो जाता है. अगर इसे गंभीरता से लिया जाये और किसी अच्छे मानसिक चिकित्सक की सलाह ली जाये तो इस तरह के आत्म्हत्या को रोका जा सकता है.
अब प्रशन पैदा होता है की सरकार ने इस दिशा में क्या कदम उठाये. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है की जो मानसिक रूप से अवसाद में चले गए उनको सिर्फ कर्ज माफ़ कर दें तो क्या वो स्वस्वस्थ हो जायेगा. जैसे की द्धारना बनी है की आर्थिक स्थिति हीं मूल कारण हैं आत्म्हत्या के. इसमें कोई शक नहीं की यह सबसे मुख्या कारण हैं. लेकिन यह अंतिम नहीं हैं.
महारष्ट्र राज्य में मौजूदा भारतीय जनता पार्टी सरकार द्वारा उठाये गए कदम
यह एक आश्चय की बात है की मजुदा राज्य सरकार में राज्य कृषि मंत्री श्री एकनाथ खडसे द्वारा एक समाचार पत्र को दिए गए व्यान में यह स्वीकार किया की उनके पास कोई उपाय नहीं है की वो किशानों की आत्म्हत्या को रोक सकें. विदित हो की मौजूदा सर्कार पिछले राज्य सरकार कांग्रेश –एनसीपी को इसके लिए जिम्मेवार ठहराते हुए इसे विशेष मुद्दा बनाकर सत्ता हासिल की. मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री दोनों ने आश्वाशन दिया था की वो कई थोश कदम उठा रहे हैं. महारष्ट्र राज्य द्वरा सुखा राहत पैकैग के रूप में ४००० करोड़ की राशि मांगी है वो १८७५ रुपया पैर एकड़ पड़ता है .

यह एक चौंकाने वाला तथ्य है जब मजुदा सरकार के पास कोई कारगर उपाय नहीं है.
राहुल गाँधी जी ने ३०.०४.२०१५ को एक दिन की पदयात्रा पर अमरावती में ए उसके ठीक एक दिन पहले गजानन शेषराव खोंगल ने कुएं में कूद कर आत्म्हत्या कर ली. ३५ वर्षीय यह किसान सिर्फ ६०००० रुपया अ कोपेरातिवे बैंक से ऋण लिया था और ऋण चुकाने के लिए उसपर दवाब डाला जा रहा था. यह घटना आसानी से रोकी जा सकती थी.
इस वर्ष असमय बारिश के कर्ण ५०००० हेक्टेयर जमीं की फसल खराब हो गयी जो करीब एक लाख किसानों को प्रभावित करता है.
यवतमाल जिला तो “” आत्म्हत्या राजधानी” के रूप में मशहूर हो गया है.
अंतिम निष्कर्ष
उपरोक्त वर्णन किये गए तथ्यों के आधार पर जो निष्कर्ष निकलता है वो काफी संवेदनशील और चौकानेवाला है जो यह प्रमाणित करता है की गरीब किसानों को सुनियोजित तरह से अमानवीय और क्रूर ढंग से आत्म्हत्या के लिए मजबूर किया जा रहा है जो नीचे लिखे गए निष्कर्ष से साफ़ पता चलता है :
⦁ विदार्व के पृथक राज्य की मांग को बुरी तरह दवाया जा रहा है क्यूंकि अगर यह पृथक राज्य बना तो खनिज तथा माल भाड़े से प्राप्त आय से महारष्ट्र को हाथ दोना पड़ेगा. साथ हीं केंद्र द्वारा दिए जा रहे मजुदा निति के तहत राशि का उपयोग महारष्ट्र के अलग क्षेत्रों में नहीं किया जा सकेगा. इस तरह स्थानीय लोगों की अकंशयों को पूरी तरह दवाया जा रहा है. विदर्भ के नेता भी सत्ता में बने रहने के लिए कोई इस दिशा में कारगर कदम नहीं उठाते. चूँकि यहाँ के लोग सांस्कृतिक रूप से शांत और सीधे हैं इसलिए कोई हिंसक आंदोलन नहीं कर खुद आत्म्हत्या कर अपनी भावनायों को व्यक्त कर रहे हैं.
⦁ यह राज्य हमारे देश के मध्य में पड़ता है इसलिए इस प्रदेश बहुत से सामान का थोक मंडी के रूप में इस्तेमाल हो रहा है जिसका कोई फायदा यहाँ के नागरिकों को नहीं मिल रहा है.
⦁ प्रशाशन पूरी तरह विफल रही है, क्यूंकि यह समस्या काफी दिनों से चली आ रही है, अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. इस तरह वो पूरी तरह लापरवाही से महारष्ट्र में बैठे राजनितिक आकयों के इशारे पर यह होने दे रहे हैं. इसलिए प्रशासन पूरी तरह जिम्मेवार है और यह एक तरह का सुनियोजित क्ष्द्यंत्र के तहत स्थानीय किसानों की हत्या के लिए सीधे तरह जिम्मेवार हैं.
⦁ परिवार के मुखिया द्वारा की जा रही आत्म्हत्या से परिवार पूरी तरह टूट चूका है. प्रशाशन से और सरकार से अपनी मांग मनवाने की ताक़त नहीं रह गयी है. वो पूरी तरह नर्किये जिन्दगी जीने को विवश हैं.
⦁ विदर्भ के किसानों को पलायन करने की परिपाटी नहीं है . इसलिए वो जीवनयापन के लिए पूरी तरह कृषि पर निर्भर हैं. यह दुर्भाग्य रहा है की हर साल प्रकितिक आप्दयों के कारण फसलों की बर्बादी होने से ऋण के जाल में फँस गए हैं. जो उनके मानसिक तनाव का कारण बना है.
⦁ इस विषय पर कभी मनोवैग्यानिक तरीके से नहीं देखा गया. यहाँ के किसानो की सोचने की प्रविर्ती बदलने के लिए उनको मनोविज्ञन के सक्षम लोगों द्वरा लगातार परामर्श दिया जाए इसका कोई पप्रबंध नहीं किया गया . यह अपने आप में एक विस्मयकारी स्थिति है.
⦁ इस समस्या का एक मात्र निदान है पृथक विदर्भ राज्य का बनाया जाना ताकि यहाँ से प्राप्त राजस्व और केंद्रीय सरकार से प्राप्त राशि का उपयोग यहाँ के लोगों के जीवन स्तर में सुधर लाने में खर्च हो.
⦁ कभी कभी रहतपॅकेज की घोषणा और उसका उचित तरह से अनुपालन समस्या को और जटिल बना रहीहै.
⦁ चूँकि यहाँ भारत का सबसे बड़ा सेज बनाया जा रहा है उसका पूरा फायदा यहाँ के निवासियों को मिले उसका अनुपालन किया जाये. यह तभी संभव है जब इसे अलग राज्य का दर्ज़ा दिया जाये.
⦁ निजी साहूकारों द्वारा ऋण के बदले जो भी जमीन हड़प ली गयी है उसे उसके परिवार को वापस दिलाया जाया. संस्थागत ऋण आसानी से उपलब्ध कराया जाये और फसलों का पूरा बिमा किया जाये ताकि जो भी हानि हो उसको बिमा कम्पनी परिपूर्ति करे. समय समय पर उनके कर्ज माफ़ किये जाएँ तथा ऋण चुकौती की अवधि बधाई जाये. नाबार्ड और RBI को काफी सख्त ढंग से इस नियम का पालन हो यह सुनिश्चित किया जाये.
⦁ बहुत सारी स्वन्व्सेवी संगठन की स्थापना युद्ध स्तर पर की जाये जो उन्नत खेती तथा स्वश्त्य सम्बन्धी मामलों को जन जन तक पहुचाये.
सारांश यही निकलता है जब तक नए विदर्भ राज्य का गठन होगा समस्या पूर्णत समाप्त नहीं होने वाली. राजनितिक दलों को निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर इस पहलु पर मानवीय ढंग से विचार करे. नहीं तो स्थिथि इतनी भयभव हो जाएगी की फिर इसकी भरपाई नहीं हो पायेगी. वह दिन दूर नहीं जब यहाँ के किसान नक्सल प्रभावित हो जाएँ जो अभी तक एक शांत प्रदेश रहा है. पूरा बुभाग बारूद की ढेर पर बैठा है जो कभी भी एक चिंगारी से विस्फोटक हो सकती है.
संबंधित पोस्ट
गाजा सीमा के पास इजरायल का औचक सैन्य अभ्यास इजरायली सेना ने गाजा पट्टी सीमा पर एक औचक अभ्यास किया। इजरायली रक्षा बल (आईडीएफ) के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा कि सैन्य अभ्यास रविवार रात तक चलेगा। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, यह अनपेक्षित सैन्य अभ्यास ऐसे समय में सामने आया है, जब छह महीने पूर्व इजरायली सेना ने गाजा पट्टी में […]
शशि कपूर को दादा साहेब फाल्के पुरस्कारकपूर परिवार से दादा साहेब फाल्के पुरस्कार पाने वाले तीसरे अभिनेता हैं शशि कपूर। शशि कपूर भारत के पहले ऐसे अभिनेताओं में से एक हैं जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम किया। उन्होंने कई ब्रिटिश तथा अमेरिकी फिल्मों में काम कर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।
भारत बनेगा मनोरंजन सुपरपॉवरभारत को मनोरंजन विश्वशक्ति बनाना’ है। सम्मेलन में दुनिया भर के नेता, व्यवसायी, रचनात्मक कलाकार, सरकारी अधिकारी, अग्रणी उद्योगपति और राजनयिक भाग लेंगे। सम्मेलन में मनोरंजन जगत, फिल्म, ब्रॉडकास्ट (टेलीविजन, रेडियो), डिजिटल मनोरंजन, एनिमेशन, खेल एवं विजुअल इफेक्ट्स पर चर्चा के लिए भी सामानांतर सत्र आयोजित किए जाएंगे।
Leave a Reply