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पोटली तत्थों की

डॉ गुलरेज़ शेख
१ जनवरी २०१६ हर वर्ष की भाँति सभी समाचार पत्र अंग्रेज़ी कैलेंडर नव वर्ष के समाचारों से भरे पड़े हैं। देश ही नहीं विदेशों में भी नव वर्ष की धूम के चित्र तथा समाचार मुख्य समाचार हैं, जिनका जानना भारतीयों के लिए आवश्यक ही नहीं अपितु अति आवश्यक है?
कुछ सामाचार पत्रों में नव वर्ष की रंग में भंग वाली दुबई की स्वाहाः हुई होटल एड्रेस की तस्वीरें भी हैं।
पाश्चात्य संस्कृति की गुलामी के इस नंगे नाच से भरे समाचार पत्रों के पन्नों को मैं सतत् रूप से पलटा रहा हूँ, कुछ खोज रहा हूँ, एक भारतीय महापुरुष के लिए इन प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के पास संभवतः एक छोटा सा कॉलम तो होगा ही। इन रंगीन पन्नों में, मैं गुमशुदा की तलाश में हूँ। मैं विफल हूँ।
लगता है आज के इंडिया ने भारत को भुलाने का मानस निर्मित कर लिया है, अतः मैं यह कहने हेतु विवश हूँ कि आज हम “दूसरों को चाट रहे हैं और अपनों को डाँट रहे हैं”। मैं खोज रहा था भारत के महान वैज्ञानिक श्री सत्येंद्र नाथ बोस को जिनकी जन्मतिथि १ जनवरी को है, पर समाचार पत्रों के पास ८x२ तो दूर ६x१ का स्थान भी उन्हें स्मरण करने हेतु नहीं था। खोजी विफलता ने उस सत्य को मेरे मन में पूर्णतः स्थापित कर दिया कि हम आज भी मैक कॉले के षड़यंत्र के मानसिक गुलाम हैं।
जहाँ तक भारतीय संस्कृति का प्रश्न है उसकी अमरता पर इन पश्चिमी षड़यंत्रों एवम् सांस्कृतिक प्रहारों का क्या प्रभाव, राष्ट्र आधारित यह संस्कृति तो काल के कपाल पर अमिट रेखाएँ हैं। पर यदि किसी पर प्रभाव होगा तो वह विश्वगुरु भारत के हमारे स्वप्न को ही होगी क्योंकि जो लोग स्वयं के इतिहास को भूल जाते हैं, वे इतिहास नहीं बना पाते।
निश्चित रूप से पश्चिमी देश हमसे उन्नत हैं और उसका कारण भी है, क्योंकि उन्हें अपने विज्ञान के ज्ञान की वृद्धि तथा सृजन हेतु चार-पाँच सौ वर्षों की समयावधि प्राप्त हुई जिसे पराधीनता की जंज़ीरों में जकड़े भारत ने गवां दिया, पर यहाँ यह अंकित करना अति महत्वपूर्ण है कि समय के मान से हमारी प्रगति उनसे अधिक है। मात्र ७० वर्षों में आज भारत परमाणु लेस विश्व शक्ति है, यदि चंद्रमा पर सर्वप्रथम जल किसी ने खोजा है तो वह हमारा चंद्रयान है, सबसे कम व्यय में मंगल पर प्रथम अवसर में यदि सफलतापूर्वक किसी ने यान भेजा है तो वह हम हैं, ५००० किलोमीटर की मारक क्षमता वाली मिसाइलों से लेस देश भारत है तथा आज पश्चिमी देश भी किसी की तकनीक का सर्वाधिक उपयोग अपने उपग्रहों के जलावतरण हेतु करते हैं तो वह भी भारत का ISRO ही है।
मात्र ७० वर्षों के अल्प कालखण्ड में राष्ट्र का शीश ऊँचा करने का कार्य यदि किसी ने किया है तो वह हमारे वैज्ञानिक हैं जिन्होंने “ब्रेन ड्रेन” के युग में भी अपने राष्ट्रवाद का परिचय प्रदान किया और उन्हें भुला देना हमारे हेतु कृतघ्नता का पाप है। १ जनवरी १८९४ को कोलकाता में जन्मे सत्येन्द्र नाथ बोस की प्रारंभिक शिक्षा अपने निवास के समीप के सामान्य विद्यालय में हुई, जिसके उपरान्त उन्होंने न्यू इंडिया स्कूल तथा हिन्दू स्कूल में दाखिला लिया तथा १९१५ में गणित में M.Sc अर्जित की।
१९२४ में उन्होंने अपना खोजालेख “प्लांक्स क्वांटम विकिरण सूत्र” पर प्रचलित भौतिक विज्ञान के सूत्रों के बिना उपयोग किए प्रस्तुत किया। पर भारतीय विज्ञानिक होने के कारण विज्ञान की कोई भी ख्याति प्राप्त पत्रिका/जॉर्नल ने उसका प्रकाशन नहीं किया। श्री बोस ने अपने खोजालेख को विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन को भेजा, जिसका महत्व समझ आइंस्टीन ने स्वयं उसका जर्मन भाषा में अनुवाद कर विश्वप्रसिद्ध जर्मन वैज्ञानिक पत्रिका/जॉर्नल में श्री बोस के नाम से प्रकाशित किया। इसके पश्चात वैश्विक विज्ञान जगत में श्री बोस को ख्याति प्राप्त हुई।
श्री बोस ने अपने यूरोप प्रवास पर मैडम क्यूरी, लुई ब्रॉगली तथा अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिकों के संग कार्य किया। आइंस्टीन के संग कार्य कर उन्होंने “बोस-आइंस्टीन स्टेटिकल” की खोज की। पर विश्व स्तरीय ख्याति भी भारतीय वैज्ञानिक बोस को भेदभाव से बचा नहीं पाई। बोस की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि थी अणु के तत्व पदार्थ को खोज, जिसे पूर्व में “गॉड पार्टिकल” कहा जाता था, जिसे बाद में जिनीवा स्थित विज्ञान प्रयोगशाला में व्याहारिक रूप में प्रदर्शित किया गया। गॉड पार्टिकल की खोज में श्री बोस के सहयोगी थे ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्ग्ज़। भेदभाव की राजनीति के तहत भौतिक विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से पीटर हिग्ग्ज़ को सम्मानित किया गया तथा मुख्य खोजकर्ता सत्येंद्र नाथ बोस को वंचित रखा गया। जब इस बात पर हल्ला मचा तथा नोबेल कमेटी की नोबेलता पर प्रश्नचिन्ह लगने लगा तो, तब जाकर श्री बोस के कार्य को सम्मान प्रदान करने हेतु विश्व विज्ञान समुदाय द्वारा मूल तत्व “गॉड पार्टिकल” का पुनः नामकरण श्री बोस के नाम पर “बोसोन पार्टिकल” किया गया।
गौरों ने तो जो किया वह किया, पर उन्होंने अपनी त्रुटि सुधार हेतु गॉड पार्टिकल का नामकरण श्री सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर कर उनका नाम अमर कर दिया। पर स्वतंत्र भारत के हम मानसिक गुलाम भारतीय नागरिक तो आज भी “दूसरों को चाटने और अपनों को डांटने” के कृतघ्नतायुक्त एवम् पाखंडी कृत्य में लिप्त हैं।
ताज़ा खबर के माध्यम से भारत के महान सपूत श्री सत्येंद्र नाथ बोस की जयंती पर नमन्।
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