
आई बलौच /ताजा खबर न्यूज ब्यूरो द्वारा
पाकिस्तान सेना की नवीनतम युद्ध नीती से जो दो सबक सीखे जा सकते हैं वो हैं – एक शांति में खून बहाओ ताकि युद्ध में कम से कम रक्त बहाना पडे, दूसरा हमेषा अपने से कमजोर पर पहले सबक का अभ्यास करो। नही तो अपने से ताकतवर से भिड कर मुँह की खानी पड सकती हैै। पाकिस्तान सेना इन दो बातों पर पूरी तरह अमल कर रही है।
पाकिस्तानी सेना और आईएसआई में गंदी चाल विभाग चलाने वाले उसके आका इन दिनों अपना दिल बहलाने के लिए बलौचिस्तान में उन निहत्थे, असैन्य नागरिकों पर अपना निशाना साधने में लगे है जो हर मायने में पाकिस्तान ही के नागरिकों हैं। उनके पासपोर्ट और राष्ट्रीयता दस्तावेजों सब ऐसा ही दृर्षते हैं। यही से अपने और पराये के बीच की पतली लकीर ख्ंिाचती है।
तेल, गैस और खनिज संसाधनों से समृद्ध बलौचिस्तान पाकिस्तान के सबसे वंचित क्षेत्रों में से एक है ।
दिलचस्प बात यह है कि अंग्रेजों ने पाकिस्तान की स्वतंत्रता से चार दिन पहले 11 अगस्त 1947 को ही बलौचिस्तान को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया था। लेकिन इसके बावजूद अपनी आजादी केे तुरंत बाद, से ही मोहम्मद अली जिन्ना जिन्होने एक अलग देष के रूप में बलौचिस्तान का समर्थन किया था, बलौचिस्तान को पाकिस्तान में शामिल होने के लिए मजबूर करने लगे।

हलाकि बलौच संसद के दोनों सदनों ने उनके प्रसताव को अस्वीकार कर दिया है, बलौचिस्तान की आजादी क्षणिक रही। अजाद बलौचिस्तान केवल 227 दिन तक ही रह पाया। पाकिस्तानी सेना के सैन्य अभियान में हजारों लोग मारे गऐ और बलौचिस्तान पाकिस्तान के हाथों कि कटपुतली बन कर रह गया।
बलौच नेताओं को जबरदस्ती गिरफ्तार कर पाकिस्तान के साथ विलय के लिए दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया। गौरतलब है कि बलौच लोगों ने पाकिस्तान का हिस्सा बनने के लिए कभी अपना मत या सहमती नहीं दी।
20 मार्च 1948 को बंदूक की नोक पर पाकिस्तान सेना ने बलौचिस्तान पर कब्जा कर लिया और बलौचिस्तान एक देष से सिकुड कर एक प्रांत या सूबा बन कर रह गया। तभी से बलौचिस्तान की गिनती पाकिस्तान के सबसे बड़े और चार में से एक प्रांत के रूप में होती है।
उस दिन के बाद से पाकिस्तान सेना और पैरा सेना ने बलौचिस्तान में ज्यादतियों और मानव अधिकारों उल्लंघन का चक्रव्यू रचा है। पाकिस्तान सेना, फ्रंटियर कोर, आईएसआई, (इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस), आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) और एमआई (मिलिट्री इंटेलिजेंस) सभी ने बलौचिस्तान में अपना आतंक फैलाया है।
एक तरह से देखा जाऐ तो बलौचिस्तान में एक कभी ना समाप्त होने वाला युद्ध चल रहा है जिसमें जमीनी हमले, तोपखाने द्वारा गोलाबारी और हवाई बमबारी सब जायज हंै। इस बेवजह और बेलगाम हमले में कई लोगों और पशुओं मारे गए हैं। घर और गांव बमबारी में बरबाद हुए है।
पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के लिए यह सब बददिमाग नागरिकों को सबक सिखाने और सामूहिक सजा का तरीका है।

कई बलौच राजनैतिक कार्यकर्ताओं पर अत्याचार हुऐ, उन्हे अगवा या मार डाला और उनके शवों को खुफिया विभाग और फ्रंटियर कोर जैसे अर्धसैनिक बलों ने सड़क के किनारे पर फेंक दिया गया। कई मामलों में बलौच राजनीतिक कैदियों को हेलीकाप्टरों से नीचे फेंक दिया गया है और तरह तरह की यातनाऐं दी गईं।
नतीजा यह है कि बलौचिस्तान की स्थाई लोग जिन्होंने पिछले 60 अजीब वर्षों में अपने इर्द गिर्द इतना नरक देखा है, अब सचमुच नरक में जाने का संभावना से भी नहीं डरते।
ऐसे में बलौचों को अपने ही धर में द्वितीय श्रेणी के नागरिक बनाकर पाकिस्तान ने आग में घी झोंका है। नतीजा यह है ये लोग अपनी मूल राष्ट्रीयता या पहचान ही नहीं जान पाऐ हंै। जीवन के लिए खतरे और धमकियों एक तरफ छोड़ भी दे तो क्या इनके परिवारों और बच्चों के लिए मानव गरिमा और सुरक्षा है? कौन इस तरह के एक देश में रहना चाहगा। ऐसे में अगर बलौचिस्तान के लोग एक अलग देष की बात कर रहे हैं तो इसमे गल्त क्या है ?
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