अजित उज्जैनकर द्वारा

मध्यप्रदेश कांग्रेस के विधायक बाला बच्चन
हिन्दुस्तान का दिल – मध्य प्रदेश आजकल घोटाला प्रदेश बन चुका है। आज की ताजाखबर मनमाने तरीके से पत्रकारों को करीब 150 करोड के विज्ञापन वितरण मे हुई बंदर-बांट का घोटाला है। इस घोटाले को बेनकाब करने वाले मध्य प्रदेश कांग्रेस के विधायक बाला बच्चन हैं । एक ओर जहां मध्य प्रदेश सरकार पूरे मामले को दबाने मे लिए जुटी है – बाला बच्चन ने विधान सभा में सवाल उठाकर पूरे मामले को चर्चा का विष्य बना दिया है।

कड़वी प्याज के समान – इस घोटाले की इतनी परतें हैं कि पूरी असलियत अभी सामने आनी बाकी है। तब तक केवल अनुमान ही लगाया जा सकता हैं कि इस घोटाले ने कितनों को प्रभावित किया होगा।
जानकार सूत्रो के अनुसार इस घोटाले में कॉपी पेस्ट में माहिर मध्य प्रदेश की लगभग 259 में से 235 वेबसाईटस जुडी हैं – जबकि पूरी वेबसाई्टस को विज्ञापन नहीं दिये गये हैं। सबसे ज्यादा 34 लाख 70 हजार रूपए के विज्ञापन मात्र एक चैनल – इनसाईट टी.वी. न्यूज नेटवर्क के हिस्से आये हैं। इसके अलावा शेफाली गुप्ता की दो वेबसाईट को 27 लाख 32 हजार पांच सौ रूपये -मध्य भारत डॉट नेट में 17 लाख 25 हजार रू और कोलॉर न्यूज डॉट नेट में 10 लाख 7500 रूपए मिले हैं।
इस घोटाले में शामिल कई सोसयटीज और क्षेत्रीय प्रचार कंपनियां – कई करोड़ डकार चुकी हैं।
कुछ तो ऐसे भी महारथी हैं जो नौकरियां के साथ-साथ कई वेबसाईट्स और सोसायटीज की कमान सम्भले हैं। इन्हें मिली जमीने और सरकारी बंगले तो केवल एक औपचाकिता है – मोटी कमाई तो सोसयटीज बनाने में है जिन्हें लाखों रूपये की जमीन औने-पौने दामों पर दे दी गई।
सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि रज्जू राय व प्रकाश दीक्षित जैसे कई रिटायर्ड जनसंपर्क अधिकारी भी – पत्रकारीता का चोगा पहनकर इन सोसायटीज की वेबसाईट्स मैनेज या संचालित कर रहे हैं। अगर इन रिटायर्ड अधिकारीगण की चले तो नैतिकता के आधार पर पत्रकारों को वेबसाईट नहीं चलानी चाहिये।
सरकारी बंगलों में रह रहे कई जनसंपर्क अधिकारी तो लोगों के तबादले करवाकर मोटा कमाते हैं और मौका मिलते ही जमीनो पर कब्जा कर लेते हैं ।
सबसे बडा विरोधाभास तो मध्य प्रदेश सरकार की वेबसाईट्स की विज्ञापन वितरण नीतियों में है। मध्य प्रदेश सरकार को वेबसाईट्स को विज्ञापन देने से गुरेज नहीं है मगर जनसंपर्क अधिकारियों को जैनुअन पत्रकारों के नाम वेबसाइट की संवाददाता सूची में शामिल करने से परहेज है।
कई नियम केवल प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिये हैं जो वेबमीडिया पर लागू नहीं। खैरात ऐसे बंटती है कि भिखारी भी शर्मा जायें । खेल इतना भी आसान नहीं । कई जैनुअन अथवा वास्तविक वेबसाईट्स को विज्ञापन लेने के लिए लोहे के चने चबाने पडते हैं। सभी पत्रकार दो खेमों में बटे हैं -खालिस और मिलावटी – जिन्हें खेल स्मारिकाओं की फोटोकॉपी और कवर बदलने पर ही विज्ञापन मिल जातेे हैं।
सीधी और साफ बात तो यह है कि समाचार वेबसाइट्स को लेकर मध्य प्रदेश की सरकारी नीति काफी ढुलमुल है। इस घोटाले में सबसे बडा तथ्य ये है कि विस्तृत कवरेज की बजाय सरकारी नीति हिट्स को प्राथमिकता देती है।
वैसे कागजों पर पहले भी ऐसे ही नियम थे इनसे उनका कुछ नहीं बिगड़ता जो अंगद की तरह पैर जमाये बैठे हैं।
मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग द्वारा तमाम वेबसाईट व पोर्टलस को साढ़े चार साल में नियमों के विरूद्ध लगभग सवा बारह करोड़ रुपए के विज्ञापन बांटे गये । इसके अलावा करीब 70 न्यूज चैनलों को लगभग 72 करोड़ रूपए और क्षेत्रीय प्रचार के नाम पर लगभग 58 करोड़ फूँके गये।
भारी भरकम विज्ञापन पाने वाली 235 वेबसाईट में से मात्र 25 वेबसाईट, नियमित रूप से पत्रकारिता कर रही हैं । 210 वेबसाईट के संचालक नामी गिरामी पत्रकारों के रिश्तेदार या जनसंपर्क विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं,। बहुत से डमी पत्रकार भाजपा के प्रभावशाली नेताओं से जुड़े हैं।
जनसंपर्क विभाग में चल रहे घोटाले पर मध्य प्रदेश विधानसभा में सवाल उठाने वाले काँग्रेस विधायक बाला बच्चन का कहना हैं कि सारा पैसा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि बनाने के लिए खर्च किया गया है। इस मामले में कुछ खास लोगों को भारी कमीशन अथवा घूूस दी गई है।
ताजाखबर न्यूज के साथ खास मुलाकात में बच्चन ने बताया कि सूची में शामिल कुछ लोग सुपात्र व सामर्थ हैं जिन्हें वाकई विज्ञापन दिया जाना चाहिए। लेकिन इस सूची में अधिकांश नाम सन्देहास्पद है।
संबंधित पोस्ट
विज्ञापन घोटाले पर मघ्य प्रदेश विधानसभा में उठा सवालमध्यप्रदेश विधानसभा में जनसंपर्क विभाग में चल रहे घोटाले पर सवाल उठाने वाले काँग्रेस विधायक बाला बच्चन का कहना हैं कि सारा पैसा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की छवि बनाने के लिए खर्च गया है। इस मामले में कुछ खास लोगों का भारी कमीशन अथवा घूूस दी गई है।
क्या भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने दिया प्रधान मंत्री को धोखा?कुंडली से पलवल तक भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एन एच ए आई) के पास भूमि का एक इंच का भी वास्तविक कब्जा नहीं है ना ही जमीन पर कुछ सडक बनाने का काम शुरू हुआ है। सिर्फ जिलाधिकारियों को प्रभाव में लाकर राजस्व रिकॉर्ड में कब्जे की स्थिति को बदल दिया गया है। असली मालिक की अनुमति या एनओसी के बगैर किसी भूमि का इस तरह मौलिक अधिकार बदलना गैर कानूनी व अवैध है।
Leave a Reply